मंजिल
एक रोज उसने मुझसे पूछा,
मेरी मंजिल है कहाँ,
मैं बंद हु खुले आसमानो में,
मैं बंद हु आपके बादशाहो में,
आखिर मैं जाऊ तो जाऊ कहाँ,
एक रोज उसने मुझसे कहा।
ठंड नहीं, बादल नहीं,
फिर भी रास्ता घनघोर हैं,
दीखता नहीं कुछ सामने
मेरी आखे किस और है,
एक रोज उसने मुझसे कहा।
ये रस्ते अजीब हैं,
कुछ खुरदुरे, कुछ मखमली, कुछ में बिछे तीर हैं,
एक रोज उसने मुझसे कहा।

माँ ने कहीं, बेटा
जो रस्ते अजीब हैं,
तेरे मंजिल के करीब हैं,
मखमली रहो पर न चल,
आगे तीर का सैलाब हैं,
बाकि!
मन तेरा, तन तेरा,
रास्ते भी तेरे है।
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